
जाहि तरहें कार्तिक आ माघ मासक अपन धार्मिक महत्व अछि । ओही तरहें श्रावणक सेहो अपन बड़ पैघ धार्मिक महत्त्व अछि । आषाढ शुक्ल एकादशी “हरिशयनी एकादशी” केर उपरांत जहन भगवान् विष्णु शयनमे चलि जाइत छथि । तखन लोक शंकर-पार्वतीक आराधना मे लागि जाइत अछि।
अस्तु एहि मासके लोक शिव-पार्वतीक आराधनाक लेल प्रशस्त मानैत छथि । मिथिला सदा सँ शिव आ शक्तिक उपासक रहल अछि । श्रावणक सब रवि आ सोम कऽ लोक शिव मन्दिरमे जा बहुतो भक्ति भाव सँ पूजा अर्चना करैत छथि। मिथिलानी लोकनि श्रावण सभ सोम कऽ दिन भरि उपास रहि अपन सुहागक रक्षार्थ शिव – पार्वतीक पूजा करैत छथि । आई – काल्हि त ‘ छोट – छोट बचियो सभ अपन नीक घर-वरक कामना सँ दिन भरि उपवास रहि साँझमे शिव – पार्वतीक पूजा करैत अछि । एहि व्रतके सोमवारी व्रत कहल जाइत अछि । जे श्रावणक सोमवारी केर नाम सँ प्रसिद्ध अछि।
प्राचीन कालमे जहन रास्ता घाटक विकासो नै भेल छल तहियेसँ मैथिल लोकनि कामर लए दक्षिण वाहिनी गंगाक गंगाजल लए दुर्गम -स- दुर्गम मार्ग पर चलि द्वादशज्योतिर्लिंग सब पर गंगाजल चढ़बैत छलाह । ओना आई काल्हिक युगमे ई कामर एकटा फैशनक रूप धारण केने जा रहल अछि । आब ई कामर श्रावणमे मात्र द्वादशज्योतिर्लिंग पर नहि शिव मन्दिर में चढ़य लागल अछि ।
श्रावण मासमे नागपूजाक बड़ पैघ महत्त्व देल जाइत अछि । कारण ग्रीष्मक अन्त आ वर्षाऋतुक आरम्भ भेला सँ लोक साप (नाग) दर्शन यत्र – तत्र होइत रहैत छैक। एही लेल नागदेवता सँ रक्षा लेल लोक एहि मासक पंचमी तिथि कए विषहाराक जन्मदिन पर बड़ भक्ति भावसँ नागदेवक पूजा करैत अछि।
नव विवाहिता लोकनि एहि मासमे अपन अक्षुण सुहागक लेल मधुश्रावणी पूजा करैत छथि । “एहि व्रतक विधि विधान सविस्तर मधुश्रावणी व्रत प्रकरण मे अपने आगा देखब” । इहो पूजा प्रधानतः नाग पूजे थिक ।
श्रावण मासक शुक्ल पक्षमे राधा कृष्णक मन्दिर सभमे लोक भगवानके बड़ भक्ति पुरस्सर झुलनक आयोजन करैत अछि । पन्द्रहो दिन लोक संध्या समय राधा कृष्णक मन्दिरमे राधाकृष्णक प्रतिमाके झूला पर राखि एकटा डोर बान्हि झुलबैत अछि संगहि लोक रंग – बिरंगक झूला गीत वाद्य यंत्रक संग अबैत अछि । लोकमे एहि झूलाक लेल बड़ उत्साह आ उमंग देखल जाइत अछि ।
श्रावणक पूर्णिमाक दिन रक्षा बन्धनक त्योहार मनाओल जाइत अछि । पहिने लोक पूर्णिमाक दिन अपन इष्टदेवताक राखी चढ़ा अपना सँ छोटके मन्त्र पढ़ि पढ़ि बन्हैत छल । आजुक समय मे ई पावनि भाई-बहिनक बीच मनाओल जाइत अछि । बहिन सभ अपन भाईके राखी बन्हैत छथि।
( ई लेखक अप्पन विचार अछि )