चौरचनक पाबैन…जाहि में होएत अछि श्रापित चंद्रक पूजा

चौरचन पाबनि दृश्य
चौरचन पाबनि दृश्य

चौरचन अप्पन सभ एकटा विशेष पाबैन अछि । जाहि में श्रापित चांद केर पूजा कएल जाएत अछि । चौरचन केर चौठचंद्र-चौठीचान से हो कहल जाएत अछि । ओना त अप्पन सभ के बेशी पाबैन प्रकृति सं जुड़ल अछि । चौरचन पुत्र के दीर्घायु लेल कएल जाएत अछि । चौरचनक दिन पूरा दिन व्रत कैल जाएत अछि । सांझ में भगवान गणेश के पूजा संग चांद के विधि विधान सं पूजा केलाक बाद व्रत तोड़ल जाएत छय ।

भादव मास के शुक्ल पक्षक चतुर्थी मे साँझखन चौठचन्द्र पूजा होइत अछि । मानल जाएत अछि जे चन्द्रमा के एहि दिन कलंक लागल छल । एहि समय मे हुनकर दर्शनकेँ दोषापूर्ण मानल जाएत अछि । मान्यता ई हो अछि जे एहि समय चन्द्रमाक दर्शन करअ पर झूठ कलंक लगैत अछि । एहि लेल दोषक निवारण करबाक लेल मन्त्रक पाठ काएल जैत अछि । बाकी औरो भिन्न भिन्न मान्यता सभ अछि ।

पावनि सँ जुरल एकटा कथा से हो अछि । कथा अछि जे एक बेर भगवान गणेश अप्पन वाहन मूषक स कतउ जाएत छलाह । हिनका देखि क चन्द्रमा हँसि देलनि, जे स तमसा कअ ओं चन्द्रमा के श्राप देलखिन्ह जे अहाँ के देखबा सँ लोक कलंकित होएत । चन्द्रमा के अपना सुनर होबक के बेशी अंहकार रहेन ।  तखन चन्द्रमा भादव शुक्ल चतुर्थी मे भगवान गणेशक पूजा केलाह । जे सं प्रसन्न भअ भगवान कहलखिन्ह:- अहाँ निष्पाप छी, जे सभ भादव शुक्ल चतुर्थी के दिन अहाँक पूजा कऽ ‘सिंह प्रसेन…’ मन्त्रसँ अहाँक दर्शन करत तकरा किछु नय हेतेय आ ओकर सभ मनोरथ पूर्ण से हो हेतय ।

चौठचन्द्रक पूजा

ई चतुर्थी दिन सूर्यास्त के बाद कैल जाएत अछि । भरि दिन व्रत कएल जाएत अछि । साँझखन अंगना में पिठार सँ अरिपन देल जाइत अछि । गोलाकार चन्द्र मण्डलपर केराक पात  द अ ओहि पर मिठाई- मधुर, पूड़ी, ठकुआ, पिड़ुकिया, मालपूआ पायस आदि राखल जाएत अछि । बाकी हिनकर पूजा पूरा विधि विधान स कैल जाइत अछि । पश्चिम दिशा ओर मुख केलाक बाद रोहिणी (नक्षत्र) सहित चतुर्थी में चंद्रमाक पूजा उजर फूल सं कैल जाएत अछि । परिवारक सदस्यक संख्यामे भिन्न भिन्न ओतबेक पकवानक स डाली आ दहीक मटकुरी अरिपन पर राखल जाएत अछि । बाकी एक-एक डाली, दही, केराक घौर उठाऽ ‘सिंह: प्रसेन….’ मंत्रक संग ‘दधिशंखतुषाराभम्…’ मन्त्र पढ़ि समर्पित कैल जाएत अछि । सभ व्यक्ति एक-एक टा फल हाथमे ल’अ ओहि मन्त्र सँ चन्द्रमाक दर्शन करैत छथि । एकर बाद पुरुष सभ मड़र भांगाथि जेकरा में खीर, दालपूरी संगे फल मिठाई दही आदि पकवान रहैत छय । एकरा बाद प्रसाद सं व्रत तोड़ल जाएत अछि ।

चन्द्रमा प्रणाम मन्त्र-
‘दधि-शंख-तुषाराभं, क्षीरोदार्णव-संभवम्।
नमामि शशिनं भक्त्या, शंभोर्मुकुट भूषणम्।।’

चौठचन्द्र-
सिंह: प्रसेनवमवधीत सिंहो जाम्बवताहत: । सुकुमारक मारो दीपस्तेह्राषव स्यमन्तक: ।
अर्थात् दही, शंख ओ बर्फक समान स्वच्छ, क्षीर सागरसँ उत्पन्न चन्द्रमा (शशि) केँ भक्तिसँ प्रमाण करैत छी जे महादेवक मुकुटक भूषण थिका। 

-बबीता झा

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