सौभाग्य केर व्रत…वट सावित्री (बरसाइत)

वट सावित्री व्रत यानी बरसाइत व्रत मिथिला के एकटा प्रमुख पाविनि अछि । बरसाइत के तारीख लs कs अलग अलग मत रहल अछि । स्कंद पुराण आ भविष्योत्तर पुराण के अनुसार ज्येष्ठ मास में शुक्ल पक्ष के पूर्णिमा दिन ई व्रत करअ के विधान अछि । ओतय निर्णयामृत आदि के अनुसार ज्येष्ठ मास में अमावस्या के दिन व्रत करअ के गप्प कहल गेल अछि ।

बरसाइत मिथिला में जेठ मासक कृष्णपक्ष अमावास्या केँ दिन मनाओल जाइत अछि । ओतय महाराष्ट्र, गुजरात आ दक्षिणी भारतीय राज्य में उत्तर केर तुलना में 15 दिन बाद मनोओल जाएत अछि । बाकी समय के फेर के बावजूद ई पर्व के सभ जगह उद्देश्य एक्के टा छय । सभ जगह सौभाग्य के वृद्धि आ दांपत्य जीवन के सुखमय होवs के कामना कैल जाएत अछि । एहि पर्व मिथिला में सुहागिन सभ अपन सुहागक रक्षाक लेल मनबैत छथि | एहि दिन सुहागिन नव विवाहिता वरक (बरगद) गाछक पूजा परम श्रद्धा सँ करैत छथि ।

पाविनि में ‘वट’ (बरगद) आ ‘सावित्री’ दूनू के विशिष्ट महत्व अछि । पुराणक मान्यता अछि कि वट गाछ में तीनु देव ब्रह्मा, विष्णु आ महेश के वास अछि । आ एकर नीच्चा बसि क पूजन, व्रत आ कथा के सुनअ सं सभ मनोकामना पूर्ण होएत अछि । बर वृक्ष ज्ञान आ निर्वाण के से हो प्रतीक मानल जैत अछि । कियाक भगवान बुद्ध के एहि वृक्ष के सान्निध्य में ज्ञान प्राप्त भेल रहेन । एहि द्वारे वट गाछ के पति केर दीर्घायु खातिर पूजनाय छय ।  

पूजा गामक कोनो वरक गाछ में असगर आ सामूहिक रूप सं एकत्र भs कs कएल जैत अछि । किछु अपन आंगन में वरक गाछ के रोपि के पूजा करैत छथि । पूजन सामग्री में फूल, चानन धूप-दीप, नैवेध्य,पाकल आम,सिन्दूर,पिठार,आरतक पात,सूत,बियनि,मांटीक,खिरोधिनी,सरवा,नाग नागिन केर मूर्ति आदि अछि । पूजा में अकुंरित चना के विशेष महत्व अछि ।एहि पूजाक क्रम मे सूर्य, चंद्रमा, गौरी,साठी, गणेश,नाग,नवग्रह,वरक गाछक पूजा कएल जैत अछि । व्रत सs एक दिन पहिल सुहागिन सभ पवित्र रहि कअ नहा खाय पाविनि हो छय । पूजाक दिन नव कपड़ा पहिरs के प्रावधान अछि । पूजा आँगन मे कएला पर सात टा वरक ठाढ़ि रोपल जाएत अछि आ प्रत्येक गाछक जड़ि मे पिठार आ सिंदूर सँ अरिपन दय,पीयर रंग मे रंगल सूतक नरी केँ सातो गाछ में लपेटि, प्रत्येक गाछक निकट एक एक टा बियनि आरतक पात,आम,अंकुरी चना पूजाक क्रम में चढाएल जाएत अछि जकरा वेढ देब कहल जैत अछि | वेढ दय गाछ के बीयनि सs हौंकअ छथि आ गाछ के आलिंगन आ प्रणाम करय छथिन्ह । पूजाक समाप्ति के बाद कथा सुनल जाएत छय । कथा मे दू टा कथा होएत छय़- पौराणिक आ लोक कथा । पौराणिक कथा मे सावित्री सत्यवानक कथा अछि । ओतय लोक कथा में ब्राह्मणक कथा अछि । एहि कथाक केर समाप्ति पर पूजा लग बैसलि सभ स्त्री अपन अपन माथ पर सs वरक पात उतारि कअ अपन अपन पाछू में फेकय छथि । ई पात कथा शुरू होव सs पहिले माथा पर लेल जाएत अछि ।

लोक मान्‍यता अछि कि वट सावित्री व्रत करअ आ कथा सुनअ सs उपासक के वैवाहिक जीवन आ जीवन साथी के आयु पर कोनो तरहक संकट एला के बादों टालि जाएत अछि ।

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